तेरी, मेरी, सबकी समझ से परे हैं दुनिया,
कि मतलब के लिए कितना गिरे हैं दुनिया!
हर चाराग़रो-गमख्वार गुरेज़ बना हैं अब तो,
लिए दस्ते-शमशीर कातिल दिखे हैं दुनिया।
कातिल, मक्कार, फरेब की सूरत बनाकर,
एक तस्वीर जो बने हैं उसे कहे हैं दुनिया!
दाग़-ए-माह दिखे हैं कोसो दूर से जमीं पर,
आस्तीन में भी सांप लिए फिरे हैं दुनिया!
सियाहे-नामे-आलमे-नापायेदारे-ताआस्सुब,
इसी बायस नामें-मुहब्बत से जले हैं दुनिया!
नाआशना-ए-खुदा को क्या ग़रज़ खुदा से,
कोई मशगूले-खुदा हैं तब टिके हैं दुनिया!
'तनहा' एहले-कलम हैं और लिखे हैं दर्द,
इसी को ना समझी हैं ना समझे हैं दुनिया।
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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