जानां तेरे हसीं ख्वाब की खुशबू,
जैसे गुलशन ए गुलाब की खुशबू!
तलवारे उठाओ ऐ मेरे दोस्तो,
हैं दस्तके-इन्किलाब की खुशबू!
खींच ही लेती हैं अपनी तरफ,
मुझे हर रोज़ शराब की खुशबू!
वो सच बोलता हैं उसके लहजे से,
आती हैं शिद्दते-तेज़ाब की खुशबू!
खुशबू जिस्मे-जानां खूब है लेकिन,
कातिल रूखे-आफताब की खुशबू!
शराब की सुराही सा बदन उसका,
और चेहरा हैं महताब की खुशबू!
'तनहा' तेरे बुज़ुर्ग उर्दू बोलते होंगे,
तेरे लहजे में हैं आदाब की खुशबू!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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