जब कभी तेरी याद आती हैं,
बेसबब आँखे भीग जाती हैं!
खुद भी रोती हैं मेरी तन्हाई,
साथ अपने मुझे रुलाती हैं!
जब वो हँसती हैं तो लगता हैं,
मानो कुदरत भी मुस्कुराती हैं!
जो यहाँ हैं कुछ उश्शाक़े-वफ़ा,
दुनिया उनसे जफ़ा निभाती हैं!
मैं उसको शेरों में गुनगुनाता हूँ,
मेरी ग़ज़लें वो गुनगुनाती हैं!
हक़ से पूछे हैं शहादत का लहू,
'तन्हा' नींद तुमको कैसे आती है!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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