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गुलजार साहब।

जिहाल-ए -मिस्कीन मकुन ब-रंजिश.....
बेहाल-ए -हिजरा बेचारा दिल है
सुनाई देती है जिसकी धड़कन ,
तुम्हारा दिल या हमारा दिल है..

गुलज़ार साहब का लिखा फ़िल्म गुलामी का ये गीत अधिकांश लोगों के समझ नहीं आने के बावजूद खूब चला। एक मुलाकात में स्वयं गुलज़ार साहब इसकी हकीकत छुपा ले गए थे, यह कहकर कि धुन के लिए कुछ फारसी शब्दों का सहारा लिया बस...।

आइए, जानते हैं इस गाने के सृजित होने की हकीकत...

***** इस गीत के शुरुआती बोल फ़ारसी के हैं ...और गुलज़ार ने इसे बेहद खूबसूरती से अमीर खुसरो के एक सूफ़ी गीत से उड़ाया है....

ज़िहाल- ध्यान देना/गौर फ़रमाना
मिस्कीं- गरीब
मकुन- नहीं
हिज्र- जुदाई

( मुझे रंजिश से भरी इन निगाहों से ना देखो क्योकि मेरा बेचारा दिल जुदाई के मारे यूँही बेहाल है.... जिस दिल कि धड़कन तुम सुन रहे हो वो तुम्हारा या मेरा ही दिल है )

खुसरो का वह गीत जिससे गुलज़ार को प्रेरणा मिली थी ...उसकी खासियत यह थी कि
इसकी पहली पंक्ति फ़ारसी में थी जबकि दूसरी पंक्ति ब्रज भाषा में....
फ़िल्म के गीत की तर्ज पर ही खुसरो के इस गीत को भी पढ़ें.... गजब के शब्द.. कमाल की शब्दों की जादूगरी....

ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल, (फ़ारसी)
दुराये नैना बनाये बतियां | (ब्रज)
कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऎ जान, (फ़ारसी)
न लेहो काहे लगाये छतियां || (ब्रज)

शबां-ए-हिजरां दरज़ चूं ज़ुल्फ़
वा रोज़-ए-वस्लत चो उम्र कोताह, (फ़ारसी)
सखि पिया को जो मैं न देखूं
तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां || (ब्रज)

यकायक अज़ दिल, दो चश्म-ए-जादू
ब सद फ़रेबम बाबुर्द तस्कीं, (फ़ारसी)
किसे पडी है जो जा सुनावे
पियारे पी को हमारी बतियां || (ब्रज)

चो शमा सोज़ान, चो ज़र्रा हैरान
हमेशा गिरयान, बे इश्क आं मेह | (फ़ारसी)
न नींद नैना, ना अंग चैना
ना आप आवें, न भेजें पतियां || (ब्रज)

बहक्क-ए-रोज़े, विसाल-ए-दिलबर
कि दाद मारा, गरीब खुसरौ | (फ़ारसी)
सपेट मन के, वराये राखूं
जो जाये पांव, पिया के खटियां || (ब्रज)

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