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दर्द होता हैं बहुत जब किसी धर्म का अपमान हो इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता हिन्दू हो या मुस्लमान हो ना आओ राजनीति के चंगुल में, खत्म हो जाओगे एक दिन तुम दोनों ही भाई मेरे भारत के निगहबान हो रहो साथ मिलकर, दुश्मन खुद तुमसे डरेंगे टीपू सुल्तान, राणा प्रताप तुम इस वतन की शान हो ये मौक़ा हैं दीवाली का, चलो मिलकर साथ मनाये कही विदेश में जाए तो वहा भी हमारा सम्मान हो 'तारिक़' ने लिख दिए मिश्रे, भाईचारे की खातिर सुन कर ग़ज़ल सब कहने लगे, मानो ये भारत उसकी जान हो पैग़ाम-ऐ-शहादत अंदाज़-ऐ-बयाँ दीवान-ऐ-ग़ालिब

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