हम उन्हें अपने दिल में बसाने लगे हैं,
वो मेरे जिस्म में फिर से समाने लगे हैं!
हो रही रोशन मेरे दिल की हर गली,
वो मुझे टूट के फिर याद आने लगे हैं।
फ़क़त चला गया तू तो, तड़पे हम थे,
की तुझे भूलने में भी ज़माने लगे हैं।
क्यों खड़े हो, बैठो दिल के बिस्तर पर,
हमारे दिल में आपके लिए शाम्याने लगे हैं।
ले चल मुझे कही दूर जालिमो की बस्ती से,
ये दरिंदे इंसान मुझे फिर से सताने लगे हैं!
'तारिक़' तूने तो दर्द के किस्से लिख दिए मगर
लोग तेरी शायरी में अपना नाम लगाने लगे हैं!
2014 ग़ज़ल
℃ copyright
Comments
Post a Comment