कभी शोला तो कभी अंगार हु मैं,
कभी शहंशाह तो कभी लाचार हूँ मैं!
दोस्त चाहे मांग ले मेरी चलती साँसे दोस्ती,
पर जां लुटाने को तैयार हूँ मैं!
बुनता रहता हूँ हर मौसम में ग़ज़लें,
कभी शायर तो कभी फनकार हूँ मैं!
विसाल हो तेरा ऐसी उम्मीद की हैं ढाल,
कभी बेवफा, कभी मिलने को बेकरार हूँ मैं!
वहशत हैं उन्हें, मिल तो ले वो एक बार मुझे,
कभी जवाब, कभी खुद में एक सवाल हूँ मैं!
अज़ीब शख्सियत हूँ जिसे चाहू अपना बना लू,
शोर मचा हैं शहर में की बेमिसाल हूँ मैं!
टुटा जब से रिश्ता, याद हैं वो हिज़्र,
कभी दिनों को गिनना,कभी हिसाब हूँ मैं!
याद आती है तो बना लेता हूँ तस्वीर तुम्हारी,
कभी मुसव्विर तो कभी कलाकार हूँ मैं!
हँसते हैं सब मुझ पर के मिटा ली अपनी हस्ती,
मुहब्बत की अज़ीब सी फिटकार हूँ मै!
मुखालिफ छोड़ना नहीं चाहते मुझे मेरे दोस्तों की तरह,
अपने दुश्मनो का इस खातिर कर्ज़दार हूँ मैं!
दुश्मनो के लिए भी अज़ीब सा हैं लहज़ा "तारिक़",
कभी नरम दिल तो कभी तलवार हूँ मैं।
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तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
👍👍👍
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