हर अपने सितम से मुझको दो-चार कर गया,
नीलाम उल्फत में मुझे मेरा यार कर गया!
मुफ़लिसी में कहाँ जोर बनाये वो ताज को,
एक शाह हम ग़रीबो को शर्म-सार कर गया!
अपनी अज़मत को झुकाया ना उसने कभी सर,
लहजा ये उसका, उसको खुद्दार कर गया!
ख़याल उसका आया था ज़हन में फिर,
धीरे से आँसुओ की चलती कतार कर गया!
'तनहा' तुम तो लिखते हुए रोते भी बहुत हो,
हर एक शेर तेरा तुझको बेज़ार कर गया!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
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