भीगी पलकों से तेरी राह तके हैं सारे
लौट के घर को आजा तेरा आँगन तुझे पुकारे
मैंने सदियों की इज्जत पल भर में तभी गंवाई
जब दुनिया ने देखी मेरी सूनी पड़ी कलाई
बिन तेरे इन त्यौहारों पर आरती कौन उतारे
लौट के घर को आजा तेरा आँगन तुझे पुकारे
तेरे बिन घर सूना है सुन माता की परछाई
तूने बापू को हाथों से रोटी नहीं खिलाई
तेरी एक नज़र की खातिर तरसे है हम सारे
लौट के घर को आजा तेरा आँगन तुझे पुकारे
कोई दु :शासन न होगा,होगा दाग न गहरा
बहना तेरी लाज बचाने,दूँगा पक्का पहरा
तू ही न होगी तो फिर इस घर को कौन संवारे
लौट के घर को आजा तेरा आँगन तुझे पुकारे
प्रत्यंचा की टंकार उठे और हो पूरा संहार
मानव का भ्रम दूर करो तुम लो दुर्गा अवतार
अर्पित हैं तेरे चरणों में सारे शस्त्र हमारे
लौट के घर को आजा तेरा आँगन तुझे पुकारे
अमिताभ भट्ट 'द्विज'
Comments
Post a Comment