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कोई नहीं अब हमदम अपना।

कोई नहीं अब हमदम अपना,
किसे कहु अब सनम  अपना!

अपनी अदाये जो याद नहीं,
बिना मतलब हैं जनम अपना!

साये से भी डर जाते हैं अब,
इतना बढ़ चुका वहम अपना!

दुश्मन हमे देख राह छोड़ देते,
ऐसा हैं अब लहू गरम अपना!

लफ़्ज़ों को ग़ज़ल में ढाल देता,
तनहा काबिल हैं कलम अपना!







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