खत्म हुए या जिंदगी के रास्ते और भी है,
हम ने देखे है जीस्त के मरहले और भी है!
वो दौरे-इश्क़ और था जो मांगता था लहू,
अबतो खून से भी जिस्म सस्ते और भी है!
जुलेका लाएगी युसूफ को बाजारे-मिस्र से, खरीद ही लेगी नूर को सिक्के और भी हैं!
मुब्तिला-ए-तन्हाई का ही फक्र नही मुझे, गमें-दर्दो-अलम से मेरे रिश्ते और भी हैं!
ज़माना भी शायरी-ए-तनहा पढ़ने लगा, वरना सुख़नवर यहाँ लिखते और भी हैं!
कलम हमारा कागज़ तक ही महदूद नहीं, इसे लगाके शेरवानी पे हम सजते और भी हैं!
तारिक़ अज़ीम 'तनहा'
मुड़ के देखा तो देखता रहा बेहोशी में होश आया तसल्ली बख़्श देख कर।
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