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दास्तान-ए-तनहा

वादा निभाएंगे कोई जबाने-बदल थोडाई हैं,
ये मज़ार-ए-'तनहा' हैं ताजमहल थोडाई है!

फूंकूँगा मैं इसमें अपनी जान और लहू दोनों,
एक किताब लिखूंगा कोई ग़ज़ल थोडाई हैं!

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