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पहाड़ो से....

पहाड़ो से कूच कर जाने को जी चाहता हैं,
ऐसी तन्हाई में मर जाने को जी चाहता हैं!

हूँ घर से कई कोस दूर  मालूम हैं  मुझको,
शामहोती हैं तो घरजाने को जी चाहता है!

गज़ले, गीत, और कुछ शेर मैं  भी लिखू,
तहरीरे-शेरोमें उभरजाने को जीचाहताहैं!

खामोश महब्बत उन्हें महब्बत ना लगती,
इश्क़ में हदसे गुज़रजाने कोजी चाहता हैं!

बहुत टूट चूका हूँ खुद को समेटते-समेटते,
कांच कीतरह बिखरजाने कोजी चाहता है!

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'




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