इन रिन्दों की खुशफहमी को हवा दे दे,
इन्हें चाहे शराब न दे मगर शीशा दे दे।
हमे आदत हैं तेरी निग़ाहों से पीने की ,
सब शराबियो को उठाके मैख़ाना दे दे!
गर तुझसे मुहब्बत करके गुनाह किया,
दूर ना जा मुझसे, मुझे कोई सजा दे दे!
कल आये थे दयारे- इश्क़ के सिपाही,
मज़ा आ जाए कोई नाम तुम्हारा दे दे!
अब तो इक आदत हैं अलम सहने की,
कहीं से आ ऐ! बेदर्द मुझे दर्द नया दे दे!
तेरी बाद जिंदगी मेरी 'तनहा' हो गयी,
लाकर महब्बत के वो पल दुबारा दे दे!
अमन के लिए तो हम हकदार है यहाँ,
वतन-ए-अमन को नाम हमारा दे दे!
तारिक अज़ीम 'तनहा'
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